अंधेरों को हमसफ़र किया जाये


नज़रों को यूँ तेज़तर किया जाये

निकले हुए हैं तीर ज़माने भर से 


ज़रूरी है सीना सिपर किया जाये

रख सके उम्र भर के लिए दिल में तू


ऐसा कुछ तेरी नज़र किया जाये

नफ़रत को डाले मिटा जड़ से ही


ऐसा कोई चारागर किया जाये

दोस्त गर कम हैं तो कोई बात नहीं


दुश्मन के दिल में बसर किया जाये

तू ना तेरा पैग़ाम मुद्दत से


ऐसे में कैसे गुज़र किया जाये

इधर से कुछ ना उधर किया जाये


गाँव को ही अब शहर किया जाये

—सुरेश सांगवान ‘सरु’

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