Check इक ज़रा सी ज़िंदगी में from Suresh Sangwan Shayari section on e akhabaar
Home » Timeline » ग़ज़लें » इक ज़रा सी ज़िंदगी में
इक ज़रा सी ज़िंदगी में इम्त्तिहां कितने हुये
बोलने वाले न जाने बेज़ुबाँ कितने हुये
ध्रुव तारा ज़िंदगी का कौन होता है कहीं
इस ज़हन के उफ़ुक़ दिल के आसमाँ कितने हुये
गिरह खुलती है फसानों की वक़्त के साथ ही
बेवजह आगाज़ में हम राज़दाँ कितने हुये
वो बसेरे ढूंढता है दिल मेरा दिन रात में
दिल सुकूं पाए जहाँ वो आशियाँ कितने हुये
ठेकियाँ हमने लगाई याद की तेरी सदा
भाग के तुमको पकड़ लूं अरमां कितने हुये
मुहब्बत का दर खुले है क्यूँ अज़ाबों की तरफ
आँख में बैठे हुये ख़्वाब परिशां कितने हुये
बरत कर ही समझते हैं लोग लोगों को यहाँ
रंग तस्वीरों के लफ़्ज़ों में बयां कितने हुये
–सुरेश सांगवान’सरु’
Post your comments about इक ज़रा सी ज़िंदगी में below.