सुनिए #Super_Bhajan श्री राम मनका 108 | दशरथ के घर जन्मे राम Ramayan Chaupai Full Kumar Vishu

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श्री राम मनका 108 | दशरथ के घर जन्मे राम Ramayan Chaupai Full Kumar Vishu Sung By : Kumar Vishu & Anuradha Podwal This version of song is written by Traditional श्री राम मनका 108 | दशरथ के घर जन्मे राम Ramayan Chaupai Full Kumar Vishu Publisher : Digital Shri Krishna It is written very beautifully, if you like this song, then share it with others, share it with your friends or Facebook or Whatsapp and give us support.

1. भीड़ पड़ी जब भक्त पुकारे , दूर करो प्रभु दुःख हमारे , दशरथ के घर जन्में राम |


2. विशवामित्र मुनीश्वर आये , दशरथ भूप से वचन सुनाये , संग में भेजे लक्ष्मण राम |


3. वन में जाय ताड़का मारी , चरण छुआए अहिल्या तारी , ऋषियों के दुःख हरते राम |


4. जनक पूरी रघुनन्दन आये , नगर निवासी दर्शन पाये , सीता के मन भाये राम |


5. रघुनन्दन ने धनुष चढाया , सब राजा का मान घटाया , सीता ने वर पायो राम |


6. परशुराम क्रोधित हो आये , दुष्ट भूप मन में हरषाये , जनक राज ने किया प्रणाम |


7. बोले लखन सुनो मुनि ग्यानी , संत नहीं होते अभिमानी , मीठी वाणी बोले राम |


8. लक्ष्मण वचन ध्यान मत दीजो , जो कछु दंड दास को दीजो , धनुष तोड्य्या हूँ मैं राम |


9. लेकर के यह धनुष चढावो , अपनी शक्ति मुझे दिखलाओ , छुवत चाप चढायो राम |


10. हुई उर्मिला लखन की नारी , श्रूतिकीर्ति रिपुसूदन प्यारी , हुई माण्डवी भरत के बाम |


11. अवधपुरी रघुनन्दन आये , घर घर नारी मंगल गाये , बारह वर्ष बिताये राम |


12. गुरु वशिष्ठ से आज्ञा लीनी , राज तिलक तैयारी कीनी , कल को होंगे राजा राम


13. कुटिल मंथरा ने बहकाई , कैकयी ने यह बात सुनाई , दे दो मेरे दो वरदान |


14. मेरी विनती तुम सुन लीजो , भरत पुत्र को गद्दी दीजो , होत प्रात: वन भेजो राम |


15. धरनी गिरे भूप ततकाला , लागा दिल में शूल विशाला , तब सुमन्त बुलवाये राम |


16. राम पिता को शीश नवाये , मुख से वचन कहा न जाये , कैकयी वचन सुनायों राम |


17. राजा के तुम प्राण प्यारे , इनके दुःख हरोगे सारे , अब तुम वन में जावों राम |


18. वन में चौदह वर्ष बिताओ , रघुकुल रीती निति अपनाओ , तपसी वेश बनाओं राम |


19. सुनत वचन राघव हरषाये , माताजी के मन्दिर आये , चरण कमल में किया प्रणाम |


20. माताजी मैं तो वन जाऊं , चौदह वर्ष बाद फिर आऊँ , चरण कमल देखू सुख धाम |


21. सुनी शूल जब यह बानी , भू पर गिरि कोशल्या रानी , धीरज बंधा रहे श्री राम |


22. सीताजी जब यह सुन पाई , रंग महल से नीचे आई , कौशल्या को किया प्रणाम |


23. मेरी चुक क्षमा कर दीजो , वन जाने की आज्ञा दीजो , सीता समझाते राम |


24. मेरी सीख सिया सुन लीजो , सास ससुर की सेवा कीजो , मुझको भी होगा विश्राम |


25. मेरा दोष बता प्रभु दीजो , संग मुझे सेवा में लीजो , अर्धागिनी तुम्हारी राम |


26. समाचार सुनि लक्ष्मण आये , धनुष बाण संग परम सुहाये , बोले संग चलूँगा राम |


27. राम लखन मिथिलेश कुमारी, वन जाने की करी तैयारी , रथ में बैठ गये सुख धाम |


28. अवधपुरी के सब नर नारी , समाचार सुन व्याकुल भारी , मचा अवध में अति कोहराम |


29. श्रिंगवेरपुर रघुवर आये , रथ को अवधपूरी लौटाये , गंगा तट पर आये राम |


30. केवट कहे चरण धुलवाओ , पीछे नौका में चढ़ जाओ , पत्थर कर दी नारी राम |


31. लाया एक कटौता पानी , चरण कमल धोये सुख मानी , नाव चढायो लक्ष्मण राम |


32. उतराई में मुदरी दीनी , केवट ने यह विनती कीनी , उतराई नहीं लुंगा राम |


33. तुम आये , हम घाट उतारे , हम आयेंगे घाट तुम्हारे , तब तुम पार लगाओ राम |


34. भरद्वाज आश्रम पर आए , राम लखन ने शीश नवाए , एक रात कीन्हा विश्राम |


35. भाई भरत अयोध्या आये , कैकई को कटु वचन सुनाये , क्यों तुमने वन भेजे राम |


36. चित्रकूट रघुनन्दन आये , वन को देख सिया सुख पाये , मिले भरत से भाई राम |


37. अवधपुरी को चलिए भाई , यह सब कैकई की कुटिलाई , तनिक दोष नहीं मेरा राम |


38. चरण पादुका तुम ले जावो , पूजा कर दर्शन फल पावो , भरत को कण्ठ लगायो राम |


39. आगे चले राम रघुराया , निशाचरों का वंश मिटाया , ऋषियों के हुए पूरन काम |


40. ‘ अनसूया ‘ की कुटिया आये , दिव्य वस्त्र सिय माँ ने पाये , था मुनि अत्री का वह धाम |


41. मुनि – स्थान आए रघुराई , शूर्पनखा की नाक कटाई , खरदूषन को मारे राम |


42. पंचवटी रघुनन्दन आए , कनक मृग ‘ मारीच ‘ संग धाये , लक्ष्मण तुम्हे बुलाते राम |


43. रावण साधू वेश में आया , भूख ने मुझको बहुत सताया , भिक्षा दो यह धर्म का काम |


44. भिक्षा लेकर सीता आई , हाथ पकड रथ में बैठाई , सुनी कुटीया देखि राम |


45. धरनी गिरे राम रघुराई , सीता के बिन व्याकुलताई , हे प्रिय सीते चीखे राम |


46. लक्ष्मण , सीता छोड़ नहीं तुम आते , जनक दुलारी नहीं गवाते , बने बनाये बिगड़े काम |


47. कोमल बदन सुहासिनी सीते , तुम बिन व्यर्थ रहेंगे जीते , लगे चांदनी जैसे घाम |


48. सुन री मैना , सुन रे तोता , मैं भी पंखो वाला होता , वन वन लेता ढूढ तमाम |


49. सुन रे गुलाब , चमेली , जूही , चंपा मुझे बता दे तू ही , सीता कहा , पुकारे राम |


50. हे नाग सुनो मन हारी ,कही देखि हो जनक दुलारी , तेरी जैसी चोटी श्याम . |


51. श्यामा हिरनी , तू ही बता दे , जनक नन्दनी मुझे मिला दे , तेरे जैसी आँखे श्याम |


52. हे अशोक , मम शोक मिटा दे , चंद्रमुखी से मुझे मिला दे , होगा सच्चा तेरा नाम . |


53. वन वन ढूढ रहे रघुराई , जनक दुलारी कहीं न पाई , गृद्धराज ने किया प्रणाम |


54. चख चख कर फल शबरी लाई , प्रेम सहित खाये रघुराई , इससे मीठे नहीं हैं आम |


55. विप्र रूप धरी हनुमत आये , चरण कमल में शिश नवाये, कंधे पर बैठाये राम |


56. सुग्रीव इनसे करी मिताई, अपनी सारी कथा सुनाई, बाली पहुचाया निज धाम |


57. सिंघासन सुग्रीव बिठाया मन मे वह अति हर्षाया वर्षा ऋतू आई राम |


58. हे भाई लक्षमन तुम जाओ , वानरपति को यु समझाओ , सीता बिन व्याकुल है राम |


59. देश देश वनार भिजवाये, सागर के सब तट पर आये, सहते भूख प्यास और घाम |


60. सम्पाती ने पता बताया , सीता को रावन ले आया , सागर कूद गए हनुमान |


61. कोने कोने पता लगाया, भगत विभीषण का घर पाया , हनुमान को किया प्रणाम |


62. अशोक वाटिका हनुमत आये , वृक्ष तले सीता को पाए , आंसू बरसे आंठो याम |


63. रावन संग निशिचरी लाके, सीता को बोला समझा के , मेरी ओर तुम देखो बाम |


64. मंदोदरी बना दू दासी , सब सेवा मे लंका वासी, करो भवन चलकर विश्राम |


65. चाहे मस्तक कटे हमारा , मैं नहीं देखू बदन तुम्हारा, मेरे तन मन धन हैं राम |


66. ऊपर से मुद्रिका गिराई , सीता जी ने कंठ लगाई, हनुमान ने किया प्रणाम |


67. मुझको भेजा हैं रघुराया , सागर लांघ यहा मैं आया , मैं हु राम दास हनुमान |


68. माता की आज्ञा मैं पाऊ, भूख लगी मीठे फल खाऊ, पीछे मैं लूँगा विश्राम |


69. वृक्षों को मत हाथ लगाना , भूमि गिरे मधुर फल खाना , निशाचरों का यह हैं धाम |


70. हनुमान ने वृक्ष उखाड़े , देख देख माली ललकारे, मार मार पहुचाये धाम |


71. अक्षय कुमार को स्वर्ग पहुचाया , इन्द्रजीत फासी ले आया , ब्रह्म्फास में बन्धे हनुमान |


72. सीता को तुम लौटा दीजो , उन से क्षमा याचना कीजो , तीन लोक के स्वामी राम |


73. भगत बिभीषण ने समझायान , रावन ने उसको धमकाया , सन्मुख देख रहे हनुमान |


74. रुई टेकल घर्त वासन मंगवाई , पूछ बाँध कर आग लगाईं, पूछ घुमहीन हनुमान |


75. सब लंका में आग लगाईं , सागर में जा पूछ बुझाई, ह्रदय कमल में राखे राम |


76. सागर कूद लौट कर आये , समाचार रघुवर ने पाए , जो माँगा सो दिया इनाम |


77. वानर रीछ संग में लाये , लक्ष्मण सहित सिन्धु तट आये, लगे सुखाने सागर राम |


78. सेतु कापी नल नील बनावे , राम राम लिख सिला तिरावे, लंका पहुचे रजा राम |


79. निशाचरों की सेना आई , गरज तरज कर हुई लड़ाई , वानर बोले जय सिया राम |


80. इन्द्रजीत ने शक्ति चलायी , धरती गिरे लखन मुरझाई, चिंता करके रोये राम |


81. जब मैं अवधपुरी से आया , हाय पिता ने प्राण गवाया, वन में गई चुराई बाम |


82. भाई तुमने भी छिटकाय, जीवन में कुछ सुख नहीं पाया , सेना में भरी कोहराम |


83. जो संजीवनी बूटी को लाये , तो भाई जीवीत हो जाए , बूटी लाएगा हनुमान |


84. जब बूटी का पता न पाया , पर्वत ही लेकर के आया , काल नेमी पहुचाया धाम |


85. भक्त भारत में बाण चलाया , चोट लगी हनुमत लंगडाया , मुख से बोले जय श्री राम |


86. बोले भारत बहुत पछताकर , पर्वत सहित बाण बैठाकर , तुम्हे मिला दू रजा राम |


87. बूटी लेकर हनुमत आया , लखन लाल उठ शीश नवाए. हनुमत कंठ लहाए राम |


88. कुम्भकरण उठकर तब आया , एक बाण से उसे गिराया , इन्द्रजीत पहुचाया धाम |


89. दुर्गापूजन रावन कीनो, नौ दिन आहार न लीणो , आसन बैठ किया हैं ध्यान |


90. रावन का व्रत खंडित किना , परम धाम पंहुचा ही दिना, वानर बोले जय श्री राम |


91. सीता ने हरी धर्द्शन किना ,चिंता शोक सभी ताज दिना , हंश कर बोले राजा राम |


92. पहले अग्नि परीक्षा पाओ, पीछे निकट हमारे आओ, तुम हो पतिव्रता हे बाम |


93. करी परीक्षा कंठ लगाईं, सब वानर सेना हरषाई, राज्य बिभीषण दीन्हा राम |


94. फिर पुष्पक विमान मंगाया , सीता सहित बैठे रघुराया, किष्किन्धा को लौटे राम


95. ऋषिवर सुन दर्शन को आये , स्तुति कर मन में हरषाए, तब गंगा तट आये राम |


96. नंदी ग्राम पवनसुत आये , भाई भारत को वचन सुनाये , लंका से आये हैं राम |


97. कहो विप्र तुम कहा से आये , ऐसे मीठे वचन सुनाये , मुझे मिला दो भैया राम |


98. अवध पूरी रघुनन्दन आये, मंदिर मंदिर मंगल छाए , माताओं को किया प्रणाम |


99. भाई भरत को गले लागाया , सिंहासन बौठे रघुराया , जग में कहा हैं – ” राजा राम” |


100. सब भूमि विप्रो को दिनी , विप्रो ने वापस दे दिनी , हम तो भजन करेंगे राम |


101. धोबी ने धोबन धमकाई , रामचंद्र ने यह सुन पाई , वन में सीता भेजी राम |


102. वाल्मीकि आश्रममे आई , लवकुश हुए दी भाई ,धीर वीर ग्यानी बलवान |


103. अश्वमेघ यग्य कीन्हा राम , सीता बिन सब सुने काम , लव कुश वहा दियो पहचान |


104. सीता , रामबिना अकुलाई , धरती से यह विनय सुनाई , मुझको अब दीजो विश्राम |


105. सीता भूमि में समाई , देख देख चिंता की रघुराई, बार बार पछताए राम |


106. राम राज्य में सब सुख पावे , प्रेम मग्न हो हरी गुण गावे, दुःख और कलेश का रहा न नाम |


107. ग्यारह हज़ार वर्ष पर्यान्ता , राज कीन्हा श्री लक्ष्मी कंता , फिर बैकुंठ पधारे राम |


108. अवधपुरी बैकुंठ सीधाई , नर नारी सबने गति पायी , शरणागत प्रतिपालक राम |


भक्ति भाव से लीला गई , मेरी विनती सुनो रघुराई , भूलू नहीं तुम्हारा नाम


पतित पावन सीता राम

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