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जब एक परिपथ में प्रेरकत्व L , प्रतिरोध R तथा संधारित्र C को श्रेणीक्रम में जोड़ा जाता है तो इस परिपथ को श्रेणी LCR परिपथ कहते है।

जब इसमें एक प्रत्यावर्ती धारा स्रोत लगाया जाता है तो इसमें विभवान्तर तथा धारा के मध्य कलांतर प्राप्त होता है और यह कला अंतर प्रेरकीय प्रतिघात तथा धारितीय प्रतिघात के कारण उत्पन्न हो जाता है।

जब प्रत्यावर्ती वोल्टता की आवृति में परिवर्तन किया जाता है तो इस परिवर्तन से प्रेरकीय प्रतिघात तथा धारितीय प्रतिघात में भी परिवर्तन होता है और फलस्वरूप परिपथ के कलांतर में भी परिवर्तन आ जाता है।


जब परिपथ में आरोपित प्रत्यावर्ती स्रोत की वोल्टता की आवृति को बढाया जाता है तो प्रेरकीय प्रतिघात Lw में वृद्धि होती है तथा धारितीय प्रतिघात 1/Cw में कमी हो जाती है।

इसी प्रकार जब जब परिपथ में आरोपित प्रत्यावर्ती स्रोत की वोल्टता की आवृति को कम किया जाता है तो प्रेरकीय प्रतिघात Lw का मान कम हो जाता है तथा धारितीय प्रतिघात 1/Cw का मान बढ़ता है।

” लेकिन परिपथ में एक स्थिति ऐसी आती है जब किसी आवृति जब प्रेरकीय प्रतिघात Lw का मान तथा धारितीय प्रतिघात 1/Cw का मान बराबर हो जाता है तथा वोल्टता तथा धारा दोनों समान कला में आ जाते है अर्थात कलान्तर शून्य हो जाता है , इस स्थिति को ही L-C-R अनुनादी की स्थिति कहते है ”

श्रेणी L-C-R अनुनादी की स्थिति में XL  =  XC होता है।


चूँकिअनुनाद की स्थिति में दोनों प्रतिघात बराबर हो जाते है अत: XL – X= 0 , इसलिए परिपथ में परिणामी प्रतिघात न्यूनतम हो जाता है अत: संधारित्र तथा प्रेरकत्व शोर्ट सर्किट की भांति व्यवहार करते है जैसा चित्र में दर्शाया गया है अर्थात दोनों शून्य प्रतिरोध की तरह कार्य करते है। जैसा चित्र में दर्शाया गया है

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LCR श्रेणी परिपथ

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