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ललिता जयंती
ललिता जंयती प्रत्येक साल माघ मास की पूर्णिमा तिथि के दिन मनाई जाती है. इस दिन मां ललिता की आराधना करने से भक्तजनो को मोक्ष की प्राप्ति होती है और व्यक्ति को जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है. ऐसी मान्यता हैं कि साल में केवल एक बार भी इनकी आराधना सच्ची श्रद्धा से कर ली जाये व्यक्ति का जीवन निहाल हो जाता हैं. जो कोई भी इस दिन मां ललिता की पूजा श्रद्धा भक्ति-भाव सहित करता है तो उसे मां त्रिपुर सुंदरी की कृपा अवश्य प्राप्त होती है और जीवन में हमेशा सुख शांति एवं समृद्धि बनी रहती है . माता ललिता को राजेश्वरी, षोडशी, त्रिपुरा सुंदरी आदि नामों से भी जाना जाता है. आदिशक्ति त्रिपुर सुंदरी मां ललिता दस महाविद्याओं में से एक हैं, ललिता की पूजा उपासना सभी के लिए बहुत ही फलदायक होता है. अगर आप भी मां ललिता की कृपा पाना चाहते हैं तो जान लीजिए ललिता जयंती पर ललिता माता की विशेष पूजा विधि, ललिता जयंती का महत्व, ललिता जयंती की कथा, ललिता माता का मंत्र और ललिता जयंती माता की आरती के बारे में-
मां ललिता की पूजा विधि, ललिता जयंती की पूजा विधि, माता ललिता पूजन विधि, Lalita Jayanti Puja Vidhi, Lalita Mata Pujan Vidhi In Hindi
1. इस दिन यानि मां ललिता जयंती के दिन सूर्यास्त से पहले उठें और सफेद और हरे रंग के वस्त्र धारण करें.
2. इसके बाद एक चौकी लें और उस पर गंगाजल छिड़कें और स्वंय उतर दिशा की और बैठ जाएं फिर चौकी पर सफेद रंग का कपड़ा बिछाएं.
3. चौकी पर कपड़ा बिछाने के बाद मां ललिता की तस्वीर स्थापित करें. यदि आपको मां षोडशी की तस्वीर न मिले तो आप श्री यंत्र भी स्थापित कर सकते हैं.
4. इसके बाद मां ललिता का कुमकुम से तिलक करें और उन्हें अक्षत, फल, फूल, दूध से बना प्रसाद या खीर अर्पित करें.
5. यह सभी चीजें अर्पित करने के बाद मां ललिता की विधिवत पूजा करें और ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नमः॥ मंत्र का जाप करें.
6. इसके बाद मां ललिता की कथा सुनें या पढ़ें.
7. कथा पढ़ने के बाद मां ललिता की धूप व दीप से आरती उतारें और उन्हें सफेद रंग की मिठाई या खीर का भोग लगाएं.
8. इसके बाद मां ललिता को सफेद रंग की मिठाई या खीर का भोग लगाएं और माता से पूजा में हुई किसी भी भूल के लिए क्षमा मांगें.
9. पूजा के बाद प्रसाद का नौ वर्ष से छोटी कन्याओं में बांट दें.
10. यदि आपको नौ वर्ष से छोटी कन्याएं न मिलें तो आप यह प्रसाद गाय को खिला दें.
11. दक्षिणमार्गी शाक्तों के मतानुसार देवी ललिता को चण्डी का स्थान प्राप्त है. इनकी पूजा पद्धति देवी चण्डी के समान ही है तथा ललितोपाख्यान, ललितासहस्रनाम, ललितात्रिशती का पाठ किया जाता है.
ललिता माता का मंत्र , Lalita Jayanti Mantra, ललिता माता का मंत्र , Lalita Mata Ka Mantra
त्रिपुर सुंदरी या ललिता माता का मंत्र- दो मंत्र है. रूद्राक्ष माला से दस माला जप कर सकते हैं.
मंत्र 1: ऐ ह्नीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नम:
मंत्र 2: ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौ: ॐ ह्रीं श्रीं क ए ई ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं सकल ह्रीं सौ: ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं नम:
दश महाविद्या – देवी शक्ति के 10 रूप
1. काली (Goddess Kali)
2. तारा (Goddess Tara)
3. षोडशी (Goddess Shodashi)
4. भुवनेश्वरी (Goddess Bhuvaneshvari)
5. भैरवी (Goddess Bhairavi)
6. छिन्नमस्ता (Goddess Chhinnamasta)
7. धूमावती (Goddess Dhumavati)
8. बगलामुखी (Goddess Bagalamukhi)
9. मातङ्गी (Goddess Matangi)
10. कमला (Goddess Kamala)
ललिता जयंती महत्व , Lalita Jayanti Importance , Lalita Jayanti Ka Mahatva
ललिता जंयती के दिन मां ललिता की पूजा – आराधना करने से भक्तजनो को मोक्ष की प्राप्ति होती है और व्यक्ति को जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है. इनके पूजन से जीवन के सभी सुखों की प्राप्ति भी होती है. इतना ही नहीं मां ललिता की पूजा करने वाला व्यक्ति को जीवित रहते ही सभी प्रकार की सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है. माता ललिता को राजेश्वरी, षोडशी,त्रिपुरा सुंदरी आदि नामों से भी जाना जाता है. माता ललिता मां पार्वती का ही एक रूप है. इसलिए इनका एक नाम तांत्रिक पार्वती भी है. ललिता जंयती पर कई जगहों पर मेले का आयोजन भी होता है. ललिता जंयती के दिन मां ललिता के मंदिर में भक्तों की भीड़ माता के दर्शनों के लिए उमड़ी रहती है. इस दिन मां ललिता के साथ स्कंदमाता और भगवान शंकर की पूजा भी की जाती है.
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पौराणिक कथा के अनुसार देवी ललिता आदि शक्ति का वर्णन देवी पुराण से प्राप्त होता है. नैमिषारण्य में एक बार यज्ञ हो रहा था जहां दक्ष प्रजापति के आने पर सभी देवता गण उनका स्वागत करने के लिए उठे. लेकिन भगवान शंकर वहां होने के बावजूद भी नहीं उठे इसी अपमान का बदला लेने के लिये दक्ष ने अपने यज्ञ में शिवजी को आमंत्रित नही किया. जिसका पता मां सती को चला और वो बिना भगवान शंकर से अनुमति लिये अपने पिता राजा दक्ष के घर पहुंच गई.
उस यज्ञ में अपने पिता के द्वारा भगवान शंकर की निंदा सुनकर और खुद को अपमानित होते देखकर उन्होने उसी अग्नि कुंड में कूदकर अपने अपने प्राणों को त्याग दिया भगवान शिव को इस बात की जानकारी हुई तो तो वह मां सती के प्रेम में व्याकुल हो गए और उन्होने मां सती के शव को कंधे में रखकर इधर उधर उन्मत भाव से घूमना शुरु कर दिया. भगवान शंकर की इस स्थिति से विश्व की सम्पूर्ण व्यवस्था छिन्न भिन्न हो गई ऐसे में विवश होकर अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शन के शव के टुकडे़ टुकडे़ कर दिए.
जिसके बाद मां सती के शव के अंग कटकर गिर गए और उन अंगों से शक्ति विभिन्न प्रकार की आकृतियों से उन स्थानों पर विराजमान हुई और वह शक्तिपीठ स्थल बन गए. महादेव भी उन स्थानों पर भैरव के विभिन्न रुपों में स्थित है.नैमिषारण्य में मां सती का ह्रदय गिरा था.नैमिष एक लिंगधारिणी शक्तिपीठ स्थल है. जहां लिंग स्वरूप में भगवान शिव की पूजा की जाती है और यही मां ललिता देवी का मंदिर भी है. जहां दरवाजे पर ही पंचप्रयाग तीर्थ विद्यमाना है.
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(जय शरणं वरणं नमो नम:)
श्री मातेश्वरी जय त्रिपुरेश्वरी,
राजेश्वरी जय नमो नम:..
करुणामयी सकल अघ हारिणी,
अमृत वर्षिणी नमो नम:..
जय शरणं वरणं नमो नम:
श्री मातेश्वरी जय त्रिपुरेश्वरी…,
अशुभ विनाशिनी, सब सुखदायिनी,
खलदल नाशिनी नमो नम:..
भंडासुर वध कारिणी जय मां,
करुणा कलिते नमो नम:..
जय शरणं वरणं नमो नम:
श्री मातेश्वरी जय त्रिपुरेश्वरी…,
भव भय हारिणी कष्ट निवारिणी,
शरण गति दो नमो नम:..
शिव भामिनी साधक मन हारिणी,
आदि शक्ति जय नमो नम:..
जय शरणं वरणं नमो नम:,
श्री मातेश्वरी जय त्रिपुरेश्वरी…..
जय त्रिपुर सुंदरी नमो नम:,
जय राजेश्वरी जय नमो नम:..
जय ललितेश्वरी जय नमो नम:,
जय अमृत वर्षिणी नमो नम:..
जय करुणा कलिते नमो नम:,
श्री मातेश्वरी जय त्रिपुरेश्वरी…,
ललिता माता चालीसा , Lalita Mata Ki Chalisa
।।चौपाई।।
जयति-जयति जय ललिते माता। तव गुण महिमा है विख्याता।।
तू सुन्दरी, त्रिपुरेश्वरी देवी। सुर नर मुनि तेरे पद सेवी।।
तू कल्याणी कष्ट निवारिणी। तू सुख दायिनी, विपदा हारिणी।।
मोह विनाशिनी दैत्य नाशिनी। भक्त भाविनी ज्योति प्रकाशिनी।।
आदि शक्ति श्री विद्या रूपा। चक्र स्वामिनी देह अनूपा।।
हृदय निवासिनी-भक्त तारिणी। नाना कष्ट विपति दल हारिणी।।
दश विद्या है रूप तुम्हारा। श्री चन्द्रेश्वरी नैमिष प्यारा।।
धूमा, बगला, भैरवी, तारा। भुवनेश्वरी, कमला, विस्तारा।।
षोडशी, छिन्न्मस्ता, मातंगी। ललितेशक्ति तुम्हारी संगी।।
ललिते तुम हो ज्योतित भाला। भक्तजनों का काम संभाला।।
भारी संकट जब-जब आए। उनसे तुमने भक्त बचाए।।
जिसने कृपा तुम्हारी पाई। उसकी सब विधि से बन आई।।
संकट दूर करो मां भारी। भक्तजनों को आस तुम्हारी।।
त्रिपुरेश्वरी, शैलजा, भवानी। जय-जय-जय शिव की महारानी।।
योग सिद्धि पावें सब योगी। भोगें भोग महा सुख भोगी।।
कृपा तुम्हारी पाके माता। जीवन सुखमय है बन जाता।।
दुखियों को तुमने अपनाया। महा मूढ़ जो शरण न आया।।
तुमने जिसकी ओर निहारा। मिली उसे संपत्ति, सुख सारा।।
आदि शक्ति जय त्रिपुर प्यारी। महाशक्ति जय-जय, भय हारी।।
कुल योगिनी, कुंडलिनी रूपा। लीला ललिते करें अनूपा।।
महा-महेश्वरी, महाशक्ति दे। त्रिपुर-सुन्दरी सदा भक्ति दे।।
महा महा-नन्दे कल्याणी। मूकों को देती हो वाणी।।
इच्छा-ज्ञान-क्रिया का भागी। होता तब सेवा अनुरागी।।
जो ललिते तेरा गुण गावे। उसे न कोई कष्ट सतावे।।
सर्व मंगले ज्वाला-मालिनी। तुम हो सर्वशक्ति संचालिनी।।
आया मां जो शरण तुम्हारी। विपदा हरी उसी की सारी।।
नामा कर्षिणी, चिंता कर्षिणी। सर्व मोहिनी सब सुख-वर्षिणी।।
महिमा तव सब जग विख्याता। तुम हो दयामयी जग माता।।
सब सौभाग्य दायिनी ललिता। तुम हो सुखदा करुणा कलिता।।
आनंद, सुख, संपत्ति देती हो। कष्ट भयानक हर लेती हो।।
मन से जो जन तुमको ध्यावे। वह तुरंत मन वांछित पावे।।
लक्ष्मी, दुर्गा तुम हो काली। तुम्हीं शारदा चक्र-कपाली।।
मूलाधार, निवासिनी जय-जय। सहस्रार गामिनी मां जय-जय।।
छ: चक्रों को भेदने वाली। करती हो सबकी रखवाली।।
योगी, भोगी, क्रोधी, कामी। सब हैं सेवक सब अनुगामी।।
सबको पार लगाती हो मां। सब पर दया दिखाती हो मां।।
हेमावती, उमा, ब्रह्माणी। भण्डासुर की हृदय विदारिणी।।
सर्व विपति हर, सर्वाधारे। तुमने कुटिल कुपंथी तारे।।
चन्द्र-धारिणी, नैमिश्वासिनी। कृपा करो ललिते अधनाशिनी।।
भक्तजनों को दरस दिखाओ। संशय भय सब शीघ्र मिटाओ।।
जो कोई पढ़े ललिता चालीसा। होवे सुख आनंद अधीसा।।
जिस पर कोई संकट आवे। पाठ करे संकट मिट जावे।।
ध्यान लगा पढ़े इक्कीस बारा। पूर्ण मनोरथ होवे सारा।।
पुत्रहीन संतति सुख पावे। निर्धन धनी बने गुण गावे।।
इस विधि पाठ करे जो कोई। दु:ख बंधन छूटे सुख होई।।
जितेन्द्र चन्द्र भारतीय बतावें। पढ़ें चालीसा तो सुख पावें।।
सबसे लघु उपाय यह जानो। सिद्ध होय मन में जो ठानो।।
ललिता करे हृदय में बासा। सिद्धि देत ललिता चालीसा।।
।।दोहा।।
ललिते मां अब कृपा करो सिद्ध करो सब काम।
श्रद्धा से सिर नाय करे करते तुम्हें प्रणाम।।
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