आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक – मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी

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Presenting the ghazal “Aah Ko Chaahiye Kya Ek Umr Asar”, written by the Urdu Poet Mirza Ghalib. This Ghazal has been sung by ghazal maestro Jagjit Singh

“>Jagjit Singh, and music is also composed by him.

आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक


कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक

दाम-ए-हर-मौज में है हल्क़ा-ए-सद-काम-ए-नहंग


देखें क्या गुज़रे है क़तरे पे गुहर होते तक

आशिक़ी सब्र-तलब और तमन्ना बेताब


दिल का क्या रंग करूँ ख़ून-ए-जिगर होते तक

ता-क़यामत शब-ए-फ़ुर्क़त में गुज़र जाएगी उम्र


सात दिन हम पे भी भारी हैं सहर होते तक

हम ने माना कि तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन


ख़ाक हो जाएँगे हम तुम को ख़बर होते तक

परतव-ए-ख़ुर से है शबनम को फ़ना की ता’लीम


मैं भी हूँ एक इनायत की नज़र होते तक

यक नज़र बेश नहीं फ़ुर्सत-ए-हस्ती ग़ाफ़िल


गर्मी-ए-बज़्म है इक रक़्स-ए-शरर होते तक

Ghazal Details: 

Singer – Jagjit Singh


Music – Jagjit Singh


Ghazal – Mirza Ghalib


Record – Saregama Ghazal

You can listen the audio of this Ghazal on following platforms – 

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