जहाँ तेरा नक़्श-ए-क़दम देखते हैं – मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी

Read शायरी of जहाँ तेरा नक़्श-ए-क़दम देखते हैं – मिर्ज़ा ग़ालिब on e akhabaar, Translations and Full wording of जहाँ तेरा नक़्श-ए-क़दम देखते हैं – मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी

Presenting the ghazal “Jahan Tera Naksh-e-Kadam Dekhte Hain”, written by the Urdu Poet Mirza Ghalib.

जहाँ तेरा नक़्श-ए-क़दम देखते हैं


ख़याबाँ ख़याबाँ इरम देखते हैं

दिल-आशुफ़्तगाँ ख़ाल-ए-कुंज-ए-दहन के


सुवैदा में सैर-ए-अदम देखते हैं

तिरे सर्व-क़ामत से इक क़द्द-ए-आदम


क़यामत के फ़ित्ने को कम देखते हैं

तमाशा कि ऐ महव-ए-आईना-दारी


तुझे किस तमन्ना से हम देखते हैं

सुराग़-ए-तफ़-ए-नाला ले दाग़-ए-दिल से


कि शब-रौ का नक़्श-ए-क़दम देखते हैं

बना कर फ़क़ीरों का हम भेस ‘ग़ालिब’


तमाशा-ए-अहल-ए-करम देखते हैं

किसू को ज़-ख़ुद रस्ता कम देखते हैं


कि आहू को पाबंद-ए-रम देखते हैं

ख़त-ए-लख़्त-ए-दिल यक-क़लम देखते हैं


मिज़ा को जवाहर रक़म देखते हैं

Submit the Corrections in जहाँ तेरा नक़्श-ए-क़दम देखते हैं – मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी at our page