तेरा बीमार न सँभला जो सँभाला लेकर – ज़ौक़ शायरी

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आख़िरी मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र के उस्ताद और राजकवि शेख़ इब्राहीम ज़ौक़ की एक ग़ज़ल “तेरा बीमार न सँभला जो सँभाला लेकर” पढ़िए.

तेरा बीमार न सँभला जो सँभाला लेकर


चुपके ही बैठे रहे दम को मसीहा लेकर

शर्ते-हिम्मत नहीं मुज़रिम हो गिरफ्तारे-अज़ाब


तूने क्या छोड़ा अगर छोड़ेगा बदला लेकर

मुझसा मुश्ताक़े-जमाल एक न पाओगे कहीं


गर्चे ढूँढ़ोगे चिराग़े-रुखे-ज़ेबा लेकर

तेरे क़दमों में ही रह जायेंगे, जायेंगे कहाँ


दश्त में मेरे क़दम आबलाए-पा लेकर

वाँ से याँ आये थे ऐ ‘ज़ौक़’ तो क्या लाये थे


याँ से तो जायेंगे हम लाख तमन्ना लेकर

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