हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन – ग़ालिब शायरी

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Presenting the ghazal “Humko Maloom Hai Jannat Ki Haqeeqat Lekin”, written by the Urdu Poet Mirza Ghalib. This ghazal has been sung by the Ghazal maestro Jagjit Singh and the music is also composed by him. Mirza Ghalib’s magnificent words and Jagjit Singh’s soulful music have endured over the years in the form of some memorable ghazals. Enjoy this gem!

हुस्न-ए-मह गरचे ब-हंगाम-ए-कमाल अच्छा है


उस से मेरा मह-ए-ख़ुर्शीद-जमाल अच्छा है

बोसा देते नहीं और दिल पे है हर लहज़ा निगाह


जी में कहते हैं कि मुफ़्त आए तो माल अच्छा है

और बाज़ार से ले आए अगर टूट गया


साग़र-ए-जम से मिरा जाम-ए-सिफ़ाल अच्छा है

बे-तलब दें तो मज़ा उस में सिवा मिलता है


वो गदा जिस को न हो ख़ू-ए-सवाल अच्छा है

उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़


वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है

देखिए पाते हैं उश्शाक़ बुतों से क्या फ़ैज़


इक बरहमन ने कहा है कि ये साल अच्छा है

हम-सुख़न तेशा ने फ़रहाद को शीरीं से किया


जिस तरह का कि किसी में हो कमाल अच्छा है

क़तरा दरिया में जो मिल जाए तो दरिया हो जाए


काम अच्छा है वो जिस का कि मआल अच्छा है

ख़िज़्र-सुल्ताँ को रखे ख़ालिक़-ए-अकबर सरसब्ज़


शाह के बाग़ में ये ताज़ा निहाल अच्छा है

हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन


दिल के ख़ुश रखने को ‘ग़ालिब’ ये ख़याल अच्छा है

Ghazal Details

Singer – Jagjit Singh


Music – Jagjit Singh


Lyrics – Mirza Ghalib


Record – Saregama

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