ऐ अन्ज़ान, नाम तो लिख दूँ तुम्हारा अपनी हर शायरी के साथ, मगर फिर ख्याल आता है, कि कितना अच्छा सा है नाम मेरे अंज़ान का, कहीं बदनाम ना हों जाए।