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मंज़िल अपनी जगह रास्ता अपनी जगह है
ज़िंदगी में सफ़र का मज़ा अपनी जगह है
मंदिर जाते हो कभी मस्जिद जाते हो
इधर उधर न ढूँढो खुदा अपनी जगह है
कहता रहे कुछ भी ये दिल और ये दुनियाँ
लेकिन यारो मां का कहा अपनी जगह है
रूठ के बैठे हैं कि मनाये कोई उन्हें
आता है समझ प्यार अना अपनी जगह है
कर देगा ज़मीर ही फ़ैसला इस बात का
गुनाह अपनी जगह है सज़ा अपनी जगह है
ज़रूरी नहीं कि निकले कोई मतलब बेशक़
रदीफ़ अपनी ती क़ाफ़िया अपनी जगह है
देखो कब तलक ये अंजाम तक पंहुचे ‘सरु’
सीधी बात नहीं सिलसिला अपनी जगह है
-सुरेश सांगवान’सरु’
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