चोट कड़ी है काल प्रबल की,


उसकी मुस्कानों से हल्की,


राजमहल कितने सपनों का पल में नित्य ढहा करता है|


मुझ से चाँद कहा करता है–


तू तो है लघु मानव केवल,


पृथ्वी-तल का वासी निर्बल,


तारों का असमर्थ अश्रु भी नभ से नित्य बहा करता है।


मुझ से चाँद कहा करता है–
तू अपने दुख में चिल्लाता,


आँखो देखी बात बताता,


तेरे दुख से कहीं कठिन दुख यह जग मौन सहा करता है।


मुझ से चाँद कहा करता है–

Mujhse Chand Kaha Karta Hai by Harivansh Rai Bachchan

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