न पत्थर चूमता है पत्थर को – केदारनाथ अग्रवाल शायरी

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केदारनाथ अग्रवाल प्रगतिशील काव्य-धारा के एक प्रमुख कवि हैं. आज उनकी एक बेहद खूबसूरत हिंदी कविता “न पत्थर चूमता है पत्थर को” पढ़िए.

न पत्थर चूमता है पत्थर को


न पत्थर बाँधता है बाँहों में


पत्थर को


न पत्थर करता है मर्दन पत्थर का


न पत्थर देखता है पत्थर को


न पत्थर उत्तेजित होता है


पत्थर को देखकर


न पत्थर मुग्ध होता है


पत्थर को देखकर


न पत्थर देता है निमंत्रण पत्थर को


न पत्थर उठाता है भुजाएँ


न पत्थर तोड़ता है पत्थर की जंघाएँ


न पत्थर कुसुमित लता है


उरोज में


न पत्थर काँपता-पसीजता है


न पत्थर बहता है धार-धार


न पत्थर होता है पवित्र


न पत्थर करता है पवित्र


न पत्थर केलि करता है पत्थर से


पत्थर नहीं रहता पत्थर


खजुराहो में।

पत्थर हो गया परिवर्तित खजुराहो में


वहाँ की सुघड़ मूर्तियों में


सप्राण हो गया निष्प्राण से


आत्माभिव्यक्तियों में


कला की कालजयी कृतियों में


चिरायु चेतना की


उपलब्धियों में


सदेह हो गया पत्थर


जीवंत जीने लगा


इंद्रियातुर जीवन


नर और नारियों का

तभी तो वहाँ-खजुराहो में


वही मिलते हैं प्रतिष्ठित


एक-दूसरे को निहारते


तन-मन वारते


एक दूसरे को


आलिंगन में आबद्ध किए


एक दूसरे को चूमते


प्रेमासक्त, विभोर,


केलि-कला में लिप्त और लीन


न कहो-न कहो इन्हें-


इन सप्राण कलाकृतियों को-


पत्थर-पत्थर-पत्थर

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