History of बुलन्द दरवाजा | Buland Darwaza in Hindi

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बुलंद दरवाजा उत्तर प्रदेश राज्य के आगरा शहर से 43 किलोमीटर दूर फतेहपुर सीकरी नामक स्थान पर स्थित एक दर्शनीय स्मारक है। “बुलंद” शब्द का अर्थ महान या ऊँचा है। अपने नाम को प्रयोजन करने वाला यह स्मारक विश्व का सबसे बड़ा प्रवेश द्वार है। हिन्दू और फारसी वास्तुकला का अनोखा उदाहरण होने के कारण इसे “भव्यता के द्वार” नाम से भी जाना जाता है। बुलंद दरवाजे का निर्माण अकबर ने सन. 1602 में करवाया था। अकबर का यह वह सपना है, जिसे अकबर ने अपने शासन काल में देखा था। दरअसल अकबर ने सीकरी को अपनी राजधानी बनाने का निश्चय किया और इसी उद्देश्य से अकबर ने यहाँ भव्य किले का निर्माण करवाया और सन. 1573 में यहीं से अकबर ने गुजरात को फ़तेह करने के लिए प्रस्थान किया। गुजरात पर विजय प्राप्त करके लौटते समय अकबर ने सीकरी का नाम “फतेहपुर” (विजयपुर) रख दिया, तब से यह स्थान “फतेहपुर सीकरी” कहलाता है।

निर्माण

बुलंद दरवाजा फतेहपुर सीकरी में स्थित है जो आगरा से 43 किलोमीटर दूर है। विश्व का सबसे ऊँचा व सबसे विशाल दरवाजा माने जाने वाले बुलंद दरवाजे का निर्माण अकबर ने सन. 1576 में गुजरात साम्राज्य पर मिली जीत की प्रसन्नता में बनवाया था। बुलंद दरवाजे को बनवाने में लगभग 12 वर्ष लगे थे। यह ऐतिहासिक स्मारक इतिहास और स्थापत्य कला को प्रदर्शित करता है। विश्व के सबसे आकर्षक बुलंद दरवाजे का फतेहपुर सीकरी में काफी ऐतिहासिक महत्व रहा है। लाल और बादामी बलुआ पत्थरों से बने इस दरवाजे को सफ़ेद और काले मार्बल्स से सजाया गया है, बुलंद दरवाजे के अन्दर एक मस्जिद भी है। बुलंद दरवाजा 54 मीटर ऊँचा व 35 मीटर चौड़ा है। कहा जाता है कि बुलंद दरवाजे की चोटी पर जाने के लिए हमें 42 सीढियाँ चढ़नी पड़ती हैं। दरवाजे के आगे और स्तंभों पर कुरान के वाक्यन खुदे हुए हैं। यह दरवाजा एक बड़े आँगन और जामा मस्जिद की ओर खुलता है। समअष्टकोणीय आकार वाला यह दरवाज़ा गुम्बदों और मीनारों से सजा हुआ है।

दरवाजे के विशाल फाटक पर ईसा मसीह से संबंधित कुछ पंक्तियाँ लिखी हैं जो इस प्रकार हैं “मरियम के पुत्र यीशु ने कहा- यह संसार एक पुल के समान है, इस पर से गुज़रो अवश्य, लेकिन इस पर अपना घर मत बनाओ। जो एक दिन की आशा रखता है वह चिरकाल तक आशा रख सकता है, जबकि यह संसार घंटे भर के लिये ही टिकता है, इसलिये अपना समय प्रार्थना में बिताओ क्योंकि उसके सिवा सब कुछ अदृश्य है” बुलंद दरवाज़े पर बाइबिल की इन पंक्तियों की उपस्थिति में अकबर को धार्मिक सहनशीलता का प्रतीक माना जाता है।

दर्शनीय स्थल

दीवान-ए-खास- यहाँ पर अकबर अक्सर अपने नवरत्नों से विचार-विमर्श किया करते थे। यह इमारत बाहर से देखने में एक मंजिला दिखाई देती है लेकिन अंदर से दो मंजिला है। इस महल के बीचों-बीच एक नक्काशीदार स्तंभ है, जिसे देखकर सैलानी आश्चर्यचकित रह जाते हैं, पर इसका राज उन्हें तब पता पड़ता है जब वे ऊपर की मंजिल पर जाते हैं।

दीवान-ए-आम- यह लाल पत्थर से बना एक विशाल अहाता है, जहाँ पर बैठकर अकबर जनता की मुसीबतें, शिकायत और झगड़े को सुनकर उनकी फरियादों पर न्याय करता था।

ख्वाब महल- यह महल कभी सम्राट अकबर का शयनकक्ष था। इस महल में शाम को नृत्य व संगीत की महफिलें लगती थीं। महल में एक खूबसूरत मंच भी है। कहा जाता है कि इसी मंच पर “तानसेन” और “बैजू बावरा” के मध्य संगीत कार्यक्रम का जबरदस्त मुकाबला हुआ करता था।

पंचमहल- यह पांच मंजिला एक ख़ूबसूरत इमारत है। इस महल का प्रयोग अकबर  द्वारा चांदनी रात का लुत्फ उठाने में होता था। इस महल की खासियत यह है कि इसमें कुल 176 स्तंभ हैं, जिनके सहारे यह इमारत बनी हुई है। प्रत्येक स्तंभ पर अलग-अलग कलाकृति देखने को मिलती हैं।

हिरन मीनार इमारत- इस दीवार पर एक अलग तरह की कलाकृति देखने को मिलती है। यहाँ हिरन के सींगों की तरह उभरे हुए पत्थर देखने में बहुत ही सुंदर लगते हैं।

शेख सलीम चिश्ती की दरगाह – बुलंद दरवाजे में प्रवेश करने पर सामने ही सम्राट अकबर के गुरु शेख सलीम चिश्ती की दरगाह है। सफेद पत्थरों से निर्मित इस दरगाह पर आज भी सभी धर्मों के लोग दूर-दूर से आते हैं और यहाँ बनी खूबसूरत जालियों को देखते हैं।

जोधाबाई महल- इस महल में अकबर की हिन्दू रानियों का निवास था। इसमें हिन्दू और मुस्लिमों की शिल्पकला का सुन्दर संयोजन देखने को मिलता है। यह महल अन्दर से दो मंजिला है।

समय बुलंद दरवाजे को देखने का समय सुबह 9 बजे से शाम को 7 बजे तक है।

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